Swami Vivekananda motivation Quotes | स्वामी विवेकानंद के सफलता पर संदेश

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स्वामी विवेकानंद के सफलता पर संदेश | Swami Vivekananda motivation Quotes


स्वामी विवेकानंद जी (Swami Vivekananda) और उनके संदेश (Quotes) आज के युवाओं के लिए प्रेरणा के स्रोत (Source of inspiration) हैं।
  1. समस्त शक्ति तुम्हारे भीतर है, तुम कुछ भी कर सकते हो और सब कुछ कर सकते हो, यह विश्वास करो। मत विश्वास करो कि तुम दुर्बल हो। आजकाल हममें से आधिकांश जैसे अपने को अधपागल समझते हैं, तुम अपने को वैसा मत समझा। इतना ही नहीं, तुम कुछ भी और हर एक काम बिना किसी की सहायता के ही कर सकते हो। तुममें सब शक्ति है। तत्पर हो जाओ। तुममें जो देवत्व छिपा हुआ है, उसे प्रकट करो।
  2. उपनिषदों का प्रत्येक पृष्ठ मुझे शक्ति का सन्देश देता है। यह विषय विशेष रूप से स्मरण रखने योग्य है, समस्त जीवन में मैंने यही महाशिक्षा प्राप्त की है-उपनिषद् कहते है - " हे मानव, तेजस्वी बनो, वीर्यवान बनो, दुर्बलता को त्यागो "
  3. जो आत्मविश्वास नहीं रखता, वही नास्तिक है। कठोपनिषद् का अध्ययन किया है, उन्हें स्मरण होगा कि किस तरह श्रद्धा के आविर्भाव के साथ ही हम नचिकेता को आप ही आप इस तरह बातचीत करते हुए देखते हैं : 'मैं बहुतों से श्रेष्ठ हूँ, कुछ लोगों से छोटा भी हूँ, परन्तु कही भी ऐसा नहीं है कि सबसे छोटा होऊँ, अत: में भी कुछ कर सकता हूँ।' 
  4. Biography Of Swami Vivekananda || motivation life of Swamiji Hindi
  5. मानव जाति के समग्र इतिहास में सभी महान् स्री- पुरुषों में यदि कोई महान् प्रेरणा सबसे अधिक सशक्त रही है तो बह है यही आत्मविश्वास। वे इस ज्ञान के साथ पैदा हुए थे कि वे महान् बनेंगे और वे महान् बने भी।
  6. धर्म के बारे में कभी झगड़ा मत करो। धर्म सम्बन्धी सभी झगड़ा-फसादों से केवल यह प्रकट होता है कि आध्यात्मिकता नहीं है। धार्मिक झगड़े सदा खोखली बातों के लिए होते हैं। जब पवित्रता नहीं रहती, जब आध्यात्मिकता विदा हो जाती है और आत्मा को नीरस बना देती है, तब झगड़े शुरू होते हैं, इसके पहले नहीं।
  7. जिन लोगों में सत्य, पवित्रता और निस्वार्थपरता विद्यमान हैं, उन्हें स्वर्ग, मत्त्य एवं पाताल की कोई भी शक्ति कोई क्षति नहीं पहुँचा सकती। इन गुणों के रहने पर, चाहे समस्त विश्व ही किसी व्यक्ति के विरुद्ध क्यों न हो जाय, यह अकेला ही उसका सामना कर सकता है।
  8. स्त्रियों की अवस्था को बिना सुधारे जगत् के कल्याण की कोई सम्भावना नही है। पक्षी के लिए एक पंख से उड़ना सम्भव नहीं है।
  9. दूसरी बातों के साथ साथ उन्हें बहादुर भी बनना चाहिए। आज के जमाने में उनके लिए आत्मरक्षा करना सीखना भी बहुत जरूरी हो गया है। देखो, झाँसी की रानी कैसी महान् थीं!
  10. स्त्री जाति के प्रश्न को हल करने के लिए आगे बढ़नेवाले तुम हो कौन? क्या तुम हर एक विधवा और हर एक स्त्री के भाग्यविधाता भगवान् हो? दूर रहो! अपनी समस्याओं का समाधान वे स्वयं कर लेंगी।
  11. वेदों और उपनिषदों में स्त्रियों ने सर्वोच्च सत्यों की शिक्षा दी है और उनको वही श्रद्धा प्राप्त हुई है, जैसी कि पुरुषों को।
  12. मनुष्य-देह में स्थित मानव-आत्मा ही एकमात्र उपास्य ईश्वर है। पशु भी भगवान् के मन्दिर हैं, किन्तु मनुष्य ही सव्रश्रेष्ठ है-ताजमहल जैसा। यदि मैं उसकी उपासना नहीं कर सका, तो अन्य किसी भी मन्दिर से कुछ भी उपकार नहीं होगा।
  13. उसी को मैं महात्मा कहता हूँ, जिसका हृदय गरीबों के लिए द्रवीभूत होता है, अन्यथा वह दुरात्मा है।
  14. जब तक करोड़ों भूखे और आशिक्षित रहेंगे, तब तक में प्रत्येक उस आदमी को विश्वासघातक समझूंगा, जो उनके खर्च पर शिक्षित हुआ है, परन्तु जो उन पर तनिक भी ध्यान नही देता।
  15. यह चाहता हूँ कि ईसाई लोग हिन्दु हो जाएँ? कदापि नहीं, ईश्वर ऐसा न करे क्या मेरी यह इच्छा है कि हिन्दु या चौद्ध लोग ईसाई हो जाएँ? ईश्वर इस इच्छा से बचाए।
  16. ईसाई को हिन्दु या बौद्ध नहीं हो जाना चाहिए, और न हिन्दु अथवा बौद्ध को ईसाई ही। पर हाँ, प्रत्येक को चाहिए कि वह दूसरों के सारभाग को आत्मसात् करके पुष्टिलाभ करे और अपने वैशिष्टय की रक्षा करते हुए अपनी निजी वृद्धि के नियम के अनुसार वृद्धि को प्राप्त हो।
  17. इस धर्म-महासभा ने जगत् के समक्ष यदि कुछ प्रदर्शित किया है, तो वह यह है : उसने यह सिद्ध कर दिया है कि शुद्धता पवित्रता औीर दयाशीलता किसी सम्ब्रदायविशेष की ऐकान्तिक सम्यत्ति नहीं है, एवं प्रत्येक धर्म ने श्रेष्ठ एवं अतिशय उन्नतचरित्र ख्री-पुरुषों को जन्म दिया है।
  18. अब इन प्रत्यक्ष प्रमाणों के बावजूद भी यदि कोई ऐसा स्वप्न देखे कि अन्यान्य सारे धर्म नष्ट हो जाएँगे और केवल उसका धर्म ही जीवित रहेगा, तो उस पर मैं अपने हदय के अन्तस्तल से दया करता हूँ और उसे स्पष्ट बतलाए देता हूँ कि शीघ्र ही, सारे प्रतिरोधों के बावजूद, प्रत्येक धर्म की पताका पर यह लिखा रहेगा - 'सहायता करो, लड़ो मत', 'परभाव-प्रहण, न कि परभाव- विनाश', 'समन्वय और शान्ति, न कि मतभेद और कलह।
  19. मैं मुसलमानों के साथ मस्जिद में जाऊँगा, ईसाइयों के साथ गिरजे में जाकर क्रूसित ईसा के सामने घुटने टेकूँगा, बौद्धों के मन्दिर में प्रवेश कर बुद्ध और संध की शरण लँगा और अरन्य में जाकर हिन्दुओं के पास बैठ ध्यान में निमग्न हो, उनकी भाँति सबके हृदय को उद्भासित करनेवाली ज्योति के दर्शन करने में सचेष्ट होऊँगा। केवल इतना ही नहीं, जो पीछे आयेंगे, उनके लिए भी मैं अपना हदय उन्मुक्त रखूंगा। 
  20. क्या ईश्वर की पुस्तक समाप्त हो गयी? -अथवा अभी भी वह क्रमशः प्रकाशित हो रही है? संसार की यह आध्यात्मिक अनुभूति एक अद्भुत पुस्तक है। बाइबिल, वेद, कुरान तथा अन्यान्य धर्मग्रन्थसमूह मानो उसी पुस्तक के एक एक पृष्ठ हैं और उसके असंख्य पृष्ठ अभी भी अप्रकाशित हैं। मेरा हृदय उन सबके लिए उन्मुक्त रहेगा। हम वर्तमान में तो हैं ही, किन्तु अनन्त भविष्य की भावराशि ग्रहण करने के लिए भी हमको प्रस्तुत रहना पड़ेगा।
  21.  अतीत में जो कुछ भी हुआ है, वह सब हम ग्रहण करेंगे, वर्तमान ज्ञान-ज्योति का उपभोग करेंगे और भविष्य में जो उपस्थित होंगे, उन्हें ग्रहण करने के लिए, हृदय के सब दरवाजों को उन्मुक्त रखेंगे। अतीत के ऋषिकुल को प्रणाम, वर्तमान के महापुरुषों को प्रणाम और जो जो भविष्य में आयेंगे, उन सबको प्रणाम!
  22. हम मनुष्य जाति को उस स्थान पर पहुँचाना चाहते हैं, जहाँ न वेद हैं, न बाइबिल है, न कुरान! परन्तु वेद, बाइबिल और कुरान के समन्वय से ही ऐसा हो सकता है। मनुष्य-जाति को यह शिक्षा देनी चाहिए कि सब धर्म उस धर्म के, उस एकमेवाद्वितीय के भिन्न भिन्न रूप हैं, इसलिए प्रत्येक व्यक्ति इन धम्मों में सेअपना मनोनुकूल मार्ग चुन सकता हैl 
  23. क्या तुम्हें इस बात पर कभी खेद होता है कि देवताओं और ऋषियों के लाखों वंशज आज पशुवत् हो गए हैं? क्या तुम्हें इस बात पर दुख होता है कि लाखों मनुष्य आज भूख की ज्वाला से तड़प रहे हैं और सदियों से तड़पते रहे हैं? क्या तुम अनुभव करते हो कि अज्ञानता सघन मेघों की तरह इस देश पर छा गई है? क्या इससे तुम छटपटाते हो? क्या इससे तुम्हारी नींद उचट जाती है? क्या यह भावना मानो तुम्हारी शिराओं में से बहती हुई तुम्हारे हृदय की धड़कन के साथ एक रूप होती हुई तुम्हारे रक्त में भिद गई है? क्या इसने तुम्हें लगभग पागल सा बना दिया है? सर्वनाश के की इस भावना से क्या तुम बेचैन हो? और क्या इससे तुम अपने नाम, यश, स्त्री-बच्चे, संपत्ति और यहां तक कि अपने शरीर की सुध-बुध भूल गए हो? क्या तुम्हें ऐसा हुआ है?- देशभक्त होने की यही है प्रथम सीढ़ी, केवल प्रथम सीढ़ी... 
  24. आगामी पचास वर्षों के लिए हमारा केवल एक ही विचार-केंद्र होगा-और वह है हमारी महान मातृभूमि भारत। दूसरे सब व्यर्थ के देवताओं को उस समय तक के लिए हमारे मन से लुप्त हो जाने दो। हमारा भारत, हमारा राष्ट्रकेवल यही एक देवता हैं जो जाग रहा है, जिसके हर जगह हाथ हैं, हर जगह पैर हैं, हर जगह कान हैं-जो सब वस्तुओं में व्याप्त है। दूसरे सब देवता सो रहे हैं। हम क्यों इन व्यर्थ के देवताओं के पीछे दौड़ें, और उस देवता को- उस विराट क्यों न करें, जिसे हम अपने चारों ओर देख रहे हैं? जब हम उसकी पूजा कर लेंगे, तभी हम सभी देवताओं की पूजा करने योग्य बनेंगे
  25. मेरी राय में सर्वसाधारण जनता की उपेक्षा ही एक बड़ा राष्ट्रीय पाप है और वही एक कारण है, जिससे हमारा पतन हुआ। आप कितना भी राजकरण करें वह उस समय तक उपयोगी नहीं हो सकता, जब तक कि भारतीय फिर से अच्छी तरह सुशिक्षित न हो जाए, उसे भोजन फिर न प्राप्त हो और उसकी अच्छी देखभाल न हो.....
  26. दक्षिण भारत के ये कुछ प्राचीन मंदिर और गुजरात के सोमनाथ के समान अन्य मंदिर आपको सैकड़ों पुस्तकों की अपेक्षा कहीं अधिक प्रचुर ज्ञान प्रदान करेंगे तथा जातीय इतिहास की भीतरी बातें समझने के लिए सूक्ष्म दृष्टि देंगे। देखो, इन मंदिरों पर किस प्रकार सैकड़ों आक्रमणों और सैकड़ों पुनरुद्धारों के चिन्ह विद्यमान हैं। इन मंदिरों का भग्नावशेषों में से सदैव उद्धार होता रहा और वे हमेशा की तरह नए और सुदर बने रहे। यही है हमारे राष्ट्रीय मन का, हमारे राष्ट्रीय जीवन-प्रवाह का स्वरूप...ध्यान रखो, यदि तुम इस आध्यात्मिकता का त्याग कर दोगे और इसे एक ओर रखकर पश्चिम की जड़वादपूर्ण सभ्यता के पीछे दौड़ोगे, तो परिणाम यह होगा कि तीन पीढ़ियों में तुम एक मृत जाति बन जाओगे, क्योंकि इससे राष्ट्र की रीढ़ टूट जाएगी, राष्ट्र की वह नींव जिस पर इसका निर्माण हुआ है, नीचे धंस जाएगी और इसका फल सर्वांगीण विनाश होगा.. 
  27. मेरे जीवन की केवल एक महत्वाकांक्षा यह है कि मैं एक ऐसी संस्था एवं कार्यप्रणाली का संचालन करू, जो प्रत्येक घर तक श्रेष्ठ विचार ले जा सके और फिर स्त्री तथा पुरुष अपने-अपने भाग्य का निर्णय कर लें। वे जान लें कि उनके पूर्वजों तथा दूसरे देशों ने जीवन के अत्यंत महत्वपूर्ण प्रश्नों पर क्या सोचा है। विशेषकर वे देखें कि दूसरे लोग अब क्या कर रहे हैं, और फिर वे निर्णय करें। हमारा काम रासायनिक द्रव्यों को एक साथ रखना है, रवे बनाने का कार्य प्रकृति अपने नियमों के अनुसार करेगी ही।।
  28. हमें चाहिए प्रज्ञावान, वीर और तेजस्वी युवक, जो मृत्यु से आलिंगन करने का-समुद्र को लांघ जाने का साहस रखते हों...। हमें ऐसे सैकड़ों कार्यकर्ता चाहिए- पुरुष और स्त्री दोनों। केवल इसी लक्ष्य की सिद्धि के लिए अपनी पूरी शक्ति लगाओ। अपने चतुर्दिक लोगों का हृदय-परिवर्तन करो एवं उन्हें हमारे चरित्र-निर्माण के महातन्त्र में लगाओ। स्थान-स्थान पर निर्माण केन्द्र स्थापित करो। अधिकाधिक लोगों को दीक्षित करो। सिंह के पौरुष से युक्त, परमात्मा के प्रति अटूट निष्ठा से संपन्न और पावित्र्य की भावना से उद्दीप्त सहस्त्रों नर-नारी; दरिद्रों एवं उपेक्षितों के प्रति हार्दिक सहानुभूति लेकर देश के एक कोने से दूसरे कोने तक भ्रमण करते हुए मुक्त का, सामाजिक पुनरुत्थान का, सहयोग और समता का संदेश देंगे।
  29. "निषेधात्मक विचार मनुष्य की शक्ति क्षीण करते हैं। क्या आप नहीं देखते कि जो माता-पिता अपने बच्चों को पढ़ना-लिखना सिखाने के मोह में उन्हें हर समय ताड़ना देते रहते हैं कि “तुम मूर्ख हो, तुम कभी कुछ नहीं सीख सकोगे" उनके बच्चे अधिकांश उदाहरणों में सचमुच ऐसे ही निकल जाते हैं। यदि तुम बच्चों से मधुर वचन बोलो और उन्हें उत्साहित करो, तो धीरे-धीरे उनका सुधार होना अवश्यम्भावी है। जो बात इन छोटे बच्चों पर लागू होती है, वही उच्च विचारों के क्षेत्र में नवागन्तुकों पर भी लागू होती है। यदि तुम उन्हें भावात्मक विचार दे सको तो वे लोग सचमुच ही मनुष्य बन जाएंगे और अपने पैरों पर खड़ा होना सीख सकेंगे। भाषा और साहित्य, कला और कविता प्रत्येक क्षेत्र में उन भूलों की ओर इंगित करना चाहिए जो वे विचार अथवा कृति से कर रहे हों, अपितु उन्हें वह मार्ग दिखाना चाहिए जिस पर चलकर अपने कार्य को अच्छी प्रकार कर सकें। कमियां बतलाने से मनुष्य की भावनाओं पर आघात लगता है। हमने देखा है कि भगवान रामकृष्ण उन लोगों को भी प्रोत्साहन दिया करते थे जिन्हें हम बिल्कुल निकम्मा समझते थे और इस प्रकार उनके जीवन की दिशा को भी बदल डालते थे। उनके शिक्षण का तरीका अभूतपूर्व था.....

रामकृष्ण परमहंस के 8 उपदेश व अनमोल विचार – Ramkrishna Paramhans Quotes In Hindi

ramkrishna paramhans
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  • रात्रि के समय तुम आकाश में अनेक नक्षत्र देखते हो, परन्तु सूरयोदय होने पर नहीं देखते। तो क्या इसी कारण तुम कह सकते हो कि दिन के समय आकाश में नक्षत्र नहीं होते? हे मानव, चूँकि तुम अपनी अज्ञान अवस्था में भगवान् को देख नहीं पाते, इसी कारण यह न कहो कि भगवान् नहीं हैं।
  1. भगवान् के असंख्य नाम और अनन्त रूप हैं जिनके माध्यम से उनके निकट पहुँचा जा सकता है। जिस किसी भी नाम और रूप में उनकी पूजा करोगे, उसी के माध्यम से उन्हें प्राप्त कर लोगे।
  2.  यदि दर्पण धूल से ढका हो तो उसमे चेहरा दिखाई नहीं देता। हृदय के शुद्ध होने पर भक्ति की प्राप्ति होती है। तभी भगवान् की कृपा से उनके दर्शन होते हैं। उनका नाम जपते हुए अपने देह और मन को शुद्ध बनाओ। उनका पावन नामगुणगान गाते हुए अपनी जिह्वा को पंवित्र करो।
  3. सभी स्तरियां भगवती जगज्जननी का अंश है। उन्हे माता की दृष्टि से देखना चाहिए।
  4. किसी का दोष मत देखो-एक कीड़े का भी नहीं। जिस प्रकार तुम भगवान् से भक्ति के लिए प्रार्थना करते हो उसी प्रकार इसके लिए भी प्रार्थना करो कि तुम किसी का दोष न देखो ।
  5. तुम भगवान् के जितने निकट पहुँचोगे उतना ही शान्ति का अनुभव करोगे। शान्ति, शान्ति, चरम शान्ति। तुम जितना ही गंगा के निकट पहुँचते हो उतना ही तुम्हे गंगा की शीतलता का अनुभव होता है और जब गंगा के जल में डूबकी लगाते हो तब पूर्ण रूप से शीतल ही जाते हो।
  6. अपने सभी कर्तव्य कर्म करो किन्तु मन को भगवान् की ओर लगाये रहो। पत्नी, बच्चे, पिता, माता आदि सब के साथ रहो, सब की सेवा करो। उनसे ऐसा व्यवहार करो मानो वे तुम्हारे अत्यन्त प्रिय हों, किन्तु मन ही मन निश्चित जाने रहो कि वे तुम्हारे कोई नहीं है।
  7. में तुम्हें सच बताता हूँ। तुम संसार में रहते हो इसमें कोई हानि नहीं है। किन्तु तुम्हें अपने मन की भगवान् की ओर लगाये रखना चाहिए, अन्यथा तुम सफल नहीं होगे। एक हाथ से संसार के काम करो और दूसरे से भगवान् के चरणों को पकड़े रहो। जब संसार के कामों का अन्त हो जायगा तो दोनों हाथों से भगवान् के चरणो को पकड़ना।
  8. जैसे किसी कमरे का हजार वर्षों का अन्धकार प्रकाश के लाते ही दूर हो जाता है, वेसे जीव के जन्म- जन्मान्तरों के पाप भगवान् की एक कृपादृष्टि से ही नष्ट हो जाते हैं।

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