पर्यावरण पर आलेख - How to become green warrior ?

हालांकि दशकों पहले ही पर्यावरण (environment) के सामने उत्पन्न होने वाले वैश्विक संकट को देखते हुए पर्यावरण दिवस मनाने की शुरुआत की जा चुकी है। इसके बावजूद पर्यावरण (environment) की दशा सुधरने के बजाय लगातार बिगड़ रही है। इसके मूल कारण क्या है? पर्यावरण को स्वच्छ-सुरक्षित रखने के लिए किस तरह के प्रयासों की आवश्यकता है, ऐसे ही कुछ महत्वपूर्ण सवालों के जवाब को रेखांकित करता आलेख।

Save environment
Save environment

हम सबका है दायित्व पर्यावरण रहे स्वच्छ-सुरक्षित

पर्यावरण (environment)में पिछले कुछ वर्षों से कई तरह के असामान्य और अभूतपूर्व परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं। ये परिवर्तन प्रकृति के प्रमुख घटकों जल, जंगल, जमीन और समस्त वायुमंडल को बुरी तरह प्रभावित कर रहे हैं। यह दुष्प्रभाव इतना तीव्र है कि पृथ्वी, इसके वायुमंडल और संपूर्ण जीव जगत के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है। इसके साथ ही मानव व्यवहार से लगातार नष्ट हो रही जैव विविधता, एक बड़ी चुनौती बनकर सामने आई है। हाल ही में विश्व आर्थिक मंच (डब्लूईएफ) ने अपनी ग्लोबल रिस्क रिपोर्ट 2021 में जैव विविधता की हानि को मानव सभ्यता के सामने मौजूद सबसे बड़े खतरों में शुमार किया है। प्रदूषण रोकने के कुप्रबंधन और वनों की अनियंत्रित कटाई से भी पर्यावरण का संतुलन लगातार बिगड़ रहा है। इसके दुष्परिणाम ग्लोबल वार्मिंग, चक्रवात, बाढ़ के रूप में दिखते हैं। यही वजह है कि वैज्ञानिक और पर्यावरणविद लगातार बिगड़ते पर्यावरण के बारे में पूरी दुनिया को आगाह कर रहे हैं।

 बिगड़ते पर्यावरण के मूल कारण ?

लगातार बिगड़ते पर्यावरण (environment) के मूल कारणों को अगर हम तलाशें तो पाएंगे कि विकास और तकनीकी प्रगति की अंधी दौड़ में हमने पर्यावरण(environment) के घटकों को स्थाई रूप से नुकसान पहुंचाया है। उपभोक्तावाद के बढ़ते प्रभाववश उपभोग की अनियंत्रित आदतों के कारण संसाधनों के असीमित दोहन की प्रवृत्ति इसके लिए सर्वाधिक जिम्मेदार है। यह दोहन इस स्तर तक बढ़ गया है कि हमारे पर्यावरण के घटकों में असंतुलन बढ़ता ही जा रहा है। दरअसल, पर्यावरण जिस तरह पृथ्वी पर पाए जाने वाले सभी जीवधारियों को प्रभावित करता है, उसी तरह वो स्वयं भी सारे जीवधारियों की गतिविधियों से प्रभावित होता है। यानी, पर्यावरण और समस्त जीवधारियों में गहरा संबंध होता है। यह पूरी तरह आपसी संतुलन पर टिका होता है। ऐसे में जब मानवीय गतिविधियां अनियंत्रित और प्रकृति के विरुद्ध होती हैं तो यह संतुलन बिगड़ता है और पर्यावरण अनेक संकटों से ग्रस्त होने लगता है।

 मानवीय गतिविधियां हैं जिम्मेदार 

प्रकृति ने समस्त जीवों की उत्पत्ति एक ही सिद्धांत के तहत की है और समस्त चर-अचर जीवों के अस्तित्व को एकदूसरे से जोड़ा हुआ है। लेकिन समस्या तब शुरू हुई, जब मनुष्य ने स्वयं को पर्यावरण का हिस्सा ना मानकर उसको अपनी आवश्यकता के अनुसार विकृत करने लगा। इन गतिविधियों ने प्रकृति के स्वरूप को पूरी तरह बिगाड़ दिया। हालात ये हो गए कि जो नदियां, पहाड़, जंगल और जीव पृथ्वी पर हर ओर नजर आते थे, उनकी संख्या घटती गई। इतनी कि कई विलुप्त हो गए और ढेरों विलुप्ति के कगार पर हैं। ऐसा लगता है कि इंसानी समाज ने प्रकृति के विरुद्ध एक अघोषित युद्ध छेड़ रखा है और स्वयं को प्रकृति से अधिक ताकतवर साबित करने में जुटा हुआ है। यह जानते हुए भी कि प्रकृति के विरुद्ध इस युद्ध में वो जीतकर भी अपना वजूद सुरक्षित नहीं रख पाएगा।  

वैज्ञानिक आशंकाएं !

हालांकि लाखों साल से तमाम मुश्किलों के बावजूद पृथ्वी जीवन को कायम रखे हुए है। लेकिन वैज्ञानिकों के एक वर्ग का मानना है कि जिस तरह पर्यावरण संकट बढ़ता जा रहा है, उससे पृथ्वी के अस्तित्व पर भी संकट मंडरा रहा है। पृथ्वी के नष्ट होने की यह भविष्यवाणी आधुनिक युग एक महान वैज्ञानिक स्टीफन हार्किग्स ने की थी। हॉकिंग्स के अनुसार, मनुष्य इस ग्रह पर दस लाख साल बिता चुका है। अगर मनुष्य की प्रजाति को बचे रहना है तो उसे पृथ्वी छोड़कर किसी और ग्रह या उपग्रह पर शरण लेनी होगी। फिलहाल तो अब तक किसी ग्रह पर जीवन संभव नहीं जान पड़ रहा है तो हमारे पास पृथ्वी को ही सुरक्षित रखने के प्रयास करने के सिवाय कोई विकल्प नहीं है।

 सभी को करने होंगे प्रयास 

पृथ्वी को बचाने के क्रम में पर्यावरण के प्रति चिंता जताने के लिए अब तक हजारों सेमिनार और सम्मेलन होते रहे हैं। यह सिलसिला अब भी जारी है लेकिन हमारा पर्यावरण दिनों-दिन बिगड़ता ही जा रहा है। ऐसे में अब वक्त आ गया कि हम सभी इंसान अपनी जिम्मेदारी समझें। सिर्फ विचार या सम्मेलन ही नहीं, धरती और पर्यावरण को बचाने के संकल्प के साथ इस दिशा में प्रयास शुरू कर दें, क्योंकि इसकी रक्षा का दायित्व हम सब इंसानों पर समान रूप से है। प्रदूषण रोकने के हर संभव प्रयास करने होंगे। विकास के लिए प्रकृति के विनाश को रोकना होगा। पेड़, नदी, तालाब, भूमि, जंगल और जंतु प्रजातियों को बचाना होगा। अपनी उपभोग की आदतों पर लगाम लगाकर हमें पर्यावरण संतुलन की दिशा में कुछ ठोस उपाय करने होंगे। प्रकृति हजारों साल से हमें देती आ रही है और हम सदा ही लेते आए हैं। क्या अब उसके प्रति कृतज्ञ रहते हुए हम सब उसके संरक्षण और संवर्धन का संकल्प नहीं ले सकते हैं? 

आप भी बन सकते हैं ग्रीन वॉरियर (How to become green warrior ?)

अगर आप सचमुच पर्यावरण संरक्षण के लिए चिंतित रहते हैं तो सिर्फ चिंता जताने से कोई सकारात्मक परिवर्तन सामने नहीं आएगा। अपने स्तर पर छोटे-छोटे प्रयासों के जरिए भी आप पयविरण के संरक्षक यानी ग्रीन वॉरियर (green warrior) बन सकते हैं।

पर्यावरण को संरक्षित रखने के लिए  जरूरी नहीं कि बड़े प्रयास ही किए जाएं। अगर हम सब अपने दैनिक जीवन में कुछ बातों पर अमल करें तो ना केवल इससे प्रदूषण कम होगा, साथ ही आप बतौर ग्रीन वॉरियर (green warrior), पर्यावरण संरक्षण में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

 इन पर करें अमल 

  1. वाहन चलाते समय उसकी गति धीमी रखें। सिग्नल पर इंजन बंद कर दें। यथासंभव कार का इस्तेमाल कम करें, इसकी बजाय दोपहिया वाहन और संभव हो और सुविधा हो तो दोपहिया की बजाय साइकिल का प्रयोग करें। ऑफिस के सहकर्मियों के साथ तालमेल बैठा कर कारपूल का इस्तेमाल करें या अपनी बाइक अकेले चलाने की बजाय एक और व्यक्ति को साथ ले लें, इससे ईंधन की बचत होगी।
  2. फल-सब्जियों के छिलके आदि कचरे के डब्बे में न डालकर एक जगह इकट्ठे करें, इससे अच्छी खाद बनती है। आप इसे अपने बागीचे में डाल सकते हैं या इन्हें किसी माली, उद्यानकर्मी या खेती करने वाले व्यक्ति को सौंप दें।
  3. वाशिंग मशीन में कपड़े धोएं तो रोज-रोज थोड़े से कपड़ों के लिए पानी की बर्बादी करने की बजाय कपड़े हफ्ते में एक बार धोएं। इससे पानी की बचत होगी। 
  4. नहाते समय शॉवर का प्रयोग करने की बजाय मग और बाल्टी का प्रयोग करें तो आप काफी पानी बचा सकते हैं। थोड़े से पानी से शरीर गीला करके अच्छी तरह साबुन आदि लगा लें फिर पानी शरीर पर डालें। इसी तरह ब्रश करते और शेव करते समय भी वॉशबेसिन का नल जरूरत के समय ही खोलें। 
  5. बाजार में जब भी घर का राशन या साग-सब्जी लेने जाएं तो प्लास्टिक के बैग मांगने की बजाय घर से जूट या कपड़े के थैले लेकर जाएं। 
  6. उपहारों या अन्य चीजों की पैकिंग के लिए सेलोफिन पेपर (प्लास्टिक), कागज एयर सेलो टेप का प्रयोग न करके रेशमी कपड़े और साटिन के रिबन का प्रयोग करें। ये न सिर्फ आकर्षक लगेंगे बल्कि दोबारा भी इस्तेमाल हो सकते हैं।
  7. घर में विद्युत उपकरण जैसे एयरकंडीशनर, माइक्रोवेव, आयरन, हीटर, वाशिंग मशीन आदि एनर्जी सेवर ही खरीदें। 
  8. बच्चों की स्कूल की या आपकी शौकिया किताबों को पढ़ने के बाद इधर-उधर फेंकने या कबाड़ी को बेचने की बजाय अपनी जैसी हॉबी वाले या उन बच्चों को दे दें, जिनको उनकी जरूरत हो। जिन किताबों को सिर्फ एक बार शौक से पढ़ना हो, उन्हें आप लाइब्रेरी की सदस्यता लेकर भी पढ़ सकते हैं।
  9. साधारण बल्ब खरीदने की बजाय कॉम्पैक्ट फ्लूरोसेंट बल्ब खरीदें या एलईडी। ये न सिर्फ AN w अधिक टिकाऊ होते हैं बल्कि बिजली भी कम खर्च करते हैं।
  10. घर में बार-बार थोड़ा-थोड़ा खाना बनाने की बजाय सभी सदस्यों का खाना एक बार में बनाएं। दाल, चावल, चने आदि पहले से भिगो दें। इससे ईंधन की बचत होगी। 
  11. बोतलबंद पानी खरीदने से अच्छा है, घर में उबाला हुआ या फिल्टर किया हुआ पानी पिएं और रीयूज होने लायक बोतल का प्रयोग करें। संभव हो तो कांच या स्टील की बोतल का इस्तेमाल करें।
  12. फ्रिज के पीछे मौजूद कॉइल्स की समय-समय पर सफाई करते रहें। धूल-मिट्टी लगी कॉइल्स के कारण बिजली की खपत 30 फीसदी तक बढ़ सकती है। 
  13. मिनिमलिस्ट बनें यानी अनावश्यक सामान खरीदने और उन्हें इकट्ठा करने से बचें। हर चीज के उत्पादन में संसाधन खर्च होते हैं जो धरती को खोखला करने के साथ पर्यावरण को भी किसी न किसी रूप में नुकसान पहुंचाते हैं।
  14. अपनी बालकनी या बागीचे में अधिक से अधिक पौधे लगाएं, इससे आपके घर और आस-पास का वातावरण स्वच्छ रहेगा।




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