मोंटू-चिंकी के घर के सामने एक हाथी आया तो दोनों बच्चे उसे देखकर बहुत खुश हुए। पापा सोचने लगे, जो जानवर पहले बड़ी आसानी से दिख जाया करते थे, अब नहीं दिखते। ऐसा क्यों, जब इसकी जानकारी मोंटू ने चाही तो पापा ने विस्तार से दी। राष्ट्रीय लुप्तप्राय प्रजाति दिवस पर बच्चों तुम भी जानो कि कौन से लुप्तप्राय जानवर है? ये अब क्यों नहीं नजर आते? इन्हें बचाए जाने के लिए क्या प्रयास हो रहे हैं?
Endangered Species Day: राष्ट्रीय लुप्तप्राय प्रजाति दिवस |
लुप्त होते हमारे प्यारे जानवर
मम्मी-पापा, मोंटू और चिंकी एक दिन अपने घर की बालकनी में बैठे हुए थे। मोंटू की उम्र नौ साल है, चिंकी तीन साल की। तभी चिंकी अचानक उछल-उछलकर ताली बजाने लगी। मोंटू भी खुशी से उछल पड़ा, बोला, 'पापा! वो देखो... हाथी...!'
'चिंकी ने तो इतना बड़ा जानवर पहली बार देखा था। मोंटू ने भी एकाध बार ही हाथी देखा था। बच्चों को इस तरह उछलते देख हाथी पर बैठे महावत ने मुस्कुराकर हाथ हिलाया। मोंटू ने झटपट मोबाइल से एक फोटो खींच ली। बच्चों की उछल-कूद देखकर पापा मुस्कुरा रहे थे। लेकिन कुछ सोचकर वह एकाएक गंभीर हो गए। मोंटू ने पूछा, 'क्या हुआ पापा?'
पापा बोले, 'बेटा, एक समय था जब हाथियों को देखकर आश्चर्य नहीं होता था, लेकिन आज तो ये विश्व की संकटग्रस्त प्रजातियों में हैं, बहुत कम दिखते हैं।'
मोंटू ने पूछा, 'पापा, आज कौन-कौन से जानवरों पर संकट है?' पापा ने बताया, 'बेटा, आज भारतीय हाथी, शेर जैसी पूंछ वाला अफ्रीकी लंगूर, तिब्बती हिरन, डॉल्फिन, नीलगिरि तहर, बंगाल टाइगर, भारतीय शेर, भारतीय गैंडा, गौर, हिम तेंदुए, काली बत्तख, जंगली उल्लू और सफेद पंख वाली बत्तख समेत और भी कई जीवों का अस्तित्व खतरे में है।
मोंटू को जिज्ञासा हुई, उसने पूछा, 'पापा, ये जानवर क्यों खत्म होते जा रहे हैं?' पापा ने जवाब दिया, 'इसके लिए हम इंसान जिम्मेदार हैं।'
मोंटू ने आश्चर्य से पूछा, 'कैसे पापा?' पापा ने बताया, 'इन प्रजातियों के लुप्त होने का सबसे बड़ा कारण यह है कि इनके प्राकृतिक परिवेश को मनुष्य लगातार नुकसान पहुंचा रहा है। पेड़ों की कटाई, खनन और निर्माण जैसी मानवीय गतिविधियां जैवविविधता की दुश्मन बन गई है। रही सही कसर इनके शिकार ने पूरी कर दी है।
मोंटू पापा की बात बहुत ध्यान से सुन रहा था, उसने पूछा, 'पापा, क्या प्रदूषण भी इनके लिए खतरा है?' पापा ने जवाब दिया, 'हां बेटा, बिल्कुल। वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और साथ ही वह प्रदूषण, जो प्लास्टिक के कारण होता है, मनुष्यों के साथ-साथ जानवरों के लिए भी खतरा पैदा करता है।' मोंटू ने पापा से एक और प्रश्न पूछा, 'पापा, क्या हमारे प्यारे जीव-जंतुओं को बचाने के लिए कुछ किया जा रहा है?'
पापा ने बताया, 'मोंटू, हर साल मई महीने के तीसरे शुक्रवार को 'राष्ट्रीय लुप्तप्राय प्रजाति दिवस' यानी 'नेशनल एंडेंजर्ड स्पीशीज-डे' मनाया जाता है। इसके मनाए जाने का उद्देश्य यही है कि संसार में व्याप्त वन्य जीवों और लुप्तप्राय प्रजातियों के संरक्षण के लिए लोगों में जागरूकता पैदा की जाए। इसके साथ ही ग्लोबल वार्मिंग और मौसम परिवर्तन पर ध्यान देने की आवश्यकता पर जोर दिया जा रहा है, बढ़ते प्रदूषण को नियंत्रित करने के प्रयास भी किए जा रहे हैं।
वनों में जानवरों की तस्करी और शिकार पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने के प्रयास भी किए जा रहे हैं। कुछ ऐसी व्यवस्थाएं की जा रही हैं कि लुप्तप्राय प्रजातियों की प्रजनन प्रक्रिया भी बाधित न हो।' तभी मोंट्र ने देखा कि वहां आई एक रंग-बिरंगी तितली को चिंकी पकड़ने की कोशिश कर रही है। मोंटू ने दौड़कर चिंकी को पकड़ा और बोला, 'नहीं... चिंकी, ऐसा नहीं करते हैं। ऐसा करोगी तो तितलियां, पक्षी सब हमसे रूठ जाएंगे, इन्हें आराम से उड़ने दो।' चिंकी अपने भैया की बात तुरंत मान गई। पापा यह देखकर खुश हुए कि मोंटू को उनकी बात बहुत अच्छी तरह समझ में आ गई है।
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