2 Moral stories on the occasion of Holi!

Happy holi


1. राजू गुब्बारा

राजू बहुत मोटा था, इसलिए उसके दोस्त उसे गुब्बारा कहकर पुकारते थे। होली वाले दिन उसके दोस्तों ने उसके साथ रंग खेलने से मना कर दिया बोले कि वह रंग वाले टैक में कूद कर अपना मोटा शरीर खुद ही रंग ले। राजू उदास मन से घर लौट आया। लेकिन कुछ देर बाद जो हुआ, वह अपने दोस्तों का अजीज बन गया। आखिर ऐसा क्या किया राजू गुब्बारा ने?

यूं तो उसका नाम राजू था, किंतु सब उसे गुब्बारा ही कहते थे, क्योंकि वह शरीर से मोटा-तगड़ा था। 'मेरा शरीर ऐसा है तो इसमें मेरा क्या कसूर है? पता नहीं क्यों सब लोग मुझसे दूर-दूर रहते हैं? कोई मुझे पसंद नहीं करता।' दोस्तों की बेरुखी से राजू उदास होकर अकसर अपने आपसे पूछता। 'तुम किसी काम के नहीं हो। अगर सच में गुब्बारा होते तो हम तुम्हें मजे से उड़ाते।'

एक दिन गोकुल ने उसे छेड़ा तो राजू को रोना आ गया। 'जी छोटा न करो राजू, तुम तो हीरे हो हीरे, क्योंकि तुम हम सब से पढ़ाई में सबसे तेज हो।' सुनील ने उसे समझाया। एक वह ही था, जो राजू का साथ देता था। होली का त्योहार आने वाला था। इस दिन सारे लड़के खूब मस्ती करते हैं। इसलिए सबको बेसब्री से होली का इंतजार था। होली के दिन रंग खेल रहे लड़कों के पास जाकर राजू बोला, 'मुझे भी रंग लगाओ न, मैं भी होली खेलना चाहता हूं।' 'इतने मोटे शरीर पर रंग लगाकर कौन अपना रंग बर्बाद करे, तुम खुद ही जाकर रंग वाले पानीटैंक में कूद जाओ।' यह कहकर वे लड़के हंसने लगे। राजू मन मसोसकर रह गया। 

वह उदास मन से घर वापस चला आया और अपने कमरे में जाकर चुपचाप बैठ गया। कमरे की खिड़की से बाहर होली खेल रहे लड़के साफ नजर आ रहे थे। राजू उन्हें देखने लगा। तरह-तरह के रंगों से सराबोर अपने दोस्तों को देखकर राजू मन ही मन सोच रहा था, 'काश! मैं भी इन सब की तरह पतला होता तो कितना अच्छा होता।' 'हमें छोड़ दो, नहीं लगवाना तुमसे रंग। जाने दो हमें..।' तभी राजू को सुनाई दिया। वह चौंका। उसने खिड़की के पास आकर देखा, दो-तीन बड़ी उम्र के अनजान लड़के होली खेल रहे उसके दोस्तों पर कीचड़ कालिख मल रहे हैं।

मना करने के बाद भी लड़के जबरदस्ती उन पर कीचड़ फेंक रहे हैं। 'गुब्बारे भाई हमें बचा लो, यह लोग हमें परेशान कर रहे हैं।' खिड़की पर खड़े राजू को देखकर उसके दोस्तों ने मदद की गुहार लगाई। राजू तुरंत बोला,'अभी आया..।' 'रहने दो भैया, वे हैं ही इसी लायक। जो लड़के हर वक्त तुम्हारा मजाक उड़ाते रहते हैं, तुम उनकी मदद करने क्यों जा रहे हो?' राजू की छोटी बहन चिंकी ने रोका। लेकिन राजू रुका नहीं, वह तेजी से भागता हुआ अपने दोस्तों के पास पहुंचा और सीधा जाकर उन बड़े लड़कों से भिड़ गया। एक मोटे-तगड़े लड़के की हिम्मत देखकर वे अजनबी लड़के सकपका गए। राजू ने अपनी परवाह किए बिना उन लड़कों को वहां से भगा दिया। 

'वाह, गुब्बारे भाई वाह! तुमने तो कमाल कर दिया। अगर तुम न आते तो न जाने वे लोग हमारा क्या हाल कर डालते?' उन सब दोस्तों ने राहत की सांस ली और राजू को धन्यवाद दिया। राजू ने जवाब में कुछ नहीं बोला, बस चुपचाप मुड़कर वापस अपने घर की तरफ जाने लगा। न जाने उन सब दोस्तों को क्या सूझी, उन्होंने अपनी-अपनी पिचकारी में रंग भरा और सारा का सारा रंग राजू पर डाल दिया। देखते ही देखते राजू का हुलिया बदल गया। लाल, पीला, हरा, नीला और भी न जाने कितने रंगों से सराबोर राजू हक्काबक्का रह गया। 'होली है, भई होली है। बुरा न मानो होली है।' कहते हुए सारे दोस्तों ने राजू को घेर लिया।

 'अरे भाई, मेरी तरफ से भी रंग खेलने की पूरी तैयारी है।' यह कहकर राजू ने अपनी पैंट की जेब से गुलाल की थैली निकाली और अपने दोस्तों के चेहरे पर लगाने लगा। न जाने होली के इस रंग में क्या जादूथा, जो देखते ही देखते उन सब बच्चों को एक सूत्र में पिरो गया था। 

2. बदल गई मुनमुन

मुनमुन मैना को जरा भी पसंद नहीं था, कोई उसके पेड़ पर आकर बैठे। कोई बैठ भी जाता तो वह झगड़ा कर उसे भगा देती। गिल्लू गिलहरी ने कई बार उसे समझाने की कोशिटा की लेकिन उस पर कोई असर नहीं हुआ। एक दिन मुनमुन पर ऐसी बीती कि उसे समझ में आ गया, जंगल में सबसे मिलकर रहना चाहिए।


सरयू नदी के किनारे एक छोटासा जंगल था। वहां तरह-तरह के पशु-पक्षी रहते थे। गिल्लू गिलहरी और मुनमुन मैना ने भी वहीं एक पेड़ पर अपना घर बना रखा था। लेकिन दोनों का स्वभाव मेल नहीं खाता था। गिल्लू बहुत ही सीधा-साधा और मिलजुल कर रहने वाला था। जबकि मुनमुन झगड़ालू थी। उसे किसी से भी दोस्ती पसंद नहीं थी। वह किसी को भी अपने पेड़ पर बैठने नहीं देती। शोर मचाकर उसे भगा देती थी। गिल्लू को मुनमुन का स्वभाव अच्छा नहीं लगता था। वह उसे समझाता, 'अरे मुनमुन बहन, शोर क्यों मचाती हो? जंगल के हम सारे जानवर, पक्षी एक परिवार की तरह हैं। हमें मिल-जुल कर रहना चाहिए।' 

'तुमको नहीं मालूम गिल्लू, अगर जरा देर के लिए किसी को अपनी डाल पर बैठने दिया तो वह पूरे पेड़ पर कब्जा कर लेगा।' मुनमुन तुनक कर बोलती। मुनमुन की बात गिल्लू चुपचाप दुखी मन से सुन लेता। दरअसल, उसकी दोस्त गिन्नी गिलहरी पास के पेड़ पर ही रहती थी। वह जब उससे मिलने आती थी, तब भी मुनमुन शोर मचाने लगती थी। एक बार तो उसने गिन्नी को चोंच भी मार दी थी। गिन्नी को बहुत बुरा लगा। उदास गिल्लू ने गिन्नी से कहा, 'दोस्त, तुम यहां मत आया करो। तुमसे मिलने रोज मैं ही तुम्हारे पेड़ पर आ जाया करूंगा।' गिन्नी चुपचाप अपने पेड़ पर लौट गई। एक दिन की बात है। गिल्लू भोजन की तलाश में निकला था।

 मुनमुन वहीं पेड़ पर बैठी हुई थी। तभी कहीं से एक पतंग कट कर आई। पतंग का मांझा मुनमुन के पंजों में उलझ गया। उसने पंख फड़फड़ाए तो मांझा उसके पंजों से होता हुआ पंखों में उलझ गया। वह बुरी तरह फंस गई थी। निकलने के लिए छटपटाने लगी। वह जितना निकलने की कोशिश करती और उलझती गई। गिन्नी पास के पेड़ पर बैठी सब कुछ देख रही थी। लेकिन मुनमुन के झगड़ालू स्वभाव के कारण वहां जाने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी। गिन्नी को इस तरह मुनमुन का छटपटाना अच्छा नहीं लग रहा था। वह दौड़ती हुई पेड़ से नीचे उतरी और आस-पास गिल्लू को खोजने लगी। थोड़ी ही देर बाद उसे गिल्लू मिल गया। उसने उसे सारी बात बताई। फिर फटाफट दोनों मुनमुन के पास पहुंचे। गिल्लू और गिन्नी ने अपने तेज दांतों से मांझे को काट दिया। मांझे से छूटकर मुनमुन की जान में जान आई। अब गिन्नी के साथ किए अपने बर्ताव पर उसे बहुत शर्मिंदगी महसूस हो रही थी।

 वह बोली, 'गिन्नी बहन, आज तुम्हारी वजह से मेरी जान बच गई। मुझे माफ कर दो।' 'पड़ोसी होने के नाते यह तो मेरा फर्ज था।' गिन्नी बड़ी विनम्रता से बोली। गिल्लू बोला, 'मुसीबत पड़ने पर पड़ोसी ही हमारे काम आते हैं। इसलिए हमें उनसे लड़ना नहीं चाहिए।' 'मैं अब कभी किसी से झगड़ा नहीं करूंगी, सबके साथ मिलजुल कर रहूंगी।' मुनमुन बोली। मुनमुन की बात सुनकर गिन्नी बहुत खुश हुई। उसने उससे कहा, 'बहन, समझ लो, ये मांझा तुम्हारे स्वभाव को बदलने आया था। आज से खुद को अकेला मत समझना और हमेशा सबके साथ मिलकर रहना।'

बूझो तो जानें


1. बच्चों की मै प्यारी हूँ,

खूब फुहार चलाती है।

रंग-बिरंगा पानी पीती.

बोलो में क्या कहलाती हूँ।


2. कई रंग में आता हूँ,

गालों पर मल-मल कर,

सौहार्द-प्रेम बढ़ाता हूं,

मैं क्या कहलाता हूं।


3. शरबत की कहलाऊ बहना,

पिरता, गुलाब है मेरा गहना।

मेरे आने से गर्मी भागे,

मुझे पीकर सब ठंडक पाते।


4. रंग उड़ाते, धूम मचाते,

मस्ती में सब नाचते गाते।

एक-दूजे को गले लगाकर,

सारे यह त्योहार मनाते।


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