ईद मुबारक Eid Special Short Hindi Moral Story

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अखिल और अकील बहुत गहरे दोस्त थे। ईद (eid) के कुछ दिन पहले अकील की दादी की तबीयत ऐसी खराब हुई कि अखिल को लगा, इस बार ईद पर उसे सिवइयां खाने को नहीं मिलेंगी। लेकिन ईद (eid) के दिन ऐसा माहौल बना कि ईद (eid) की खुशियां अखिल और अकील के परिवार के बीच ऐसी खिली कि एक मीठी यादगार बन गई।

ईद मुबारक

अखिल और अकील, दोनों गहरे दोस्त थे। 3 यह बेमिसाल दोस्ती दादा-परदादा के जमाने से चली आ रही थी। उनके पापा और अब्बू की दोस्ती, उनके दादा और बाबा की दोस्ती की भी लोग मिसाल देते थे।इन दिनों कोरोना के चलते लॉकडाउन था। ज्यादातर लोग घर से बाहर नहीं निकलते थे। अखिल और अकील को तो घर से बाहर जाने की एकदम मनाही थी। वे घर में किताबें पढ़ते। ऑनलाइन लूडो, कैरम या अन्य कोई गेम खेलते। आपस में वीडियो कॉल करते।

चार दिन बाद ईद थी। दोनों की बातें चल रही थीं। अकील कह रहा था, 'मार्च में इतनी दिक्कत नहीं थी। इसलिए होली तो जैसे तैसे मन ही गई लेकिन ईद कैसे मनेगी? इस बार तो ईद पर मेला भी शायद ही लगे। अगर लगेगा भी तो ऐसी भीड़-भाड़ में जाना ठीक न होगा।' अखिल ने हामी भरी और दो साल पुरानी यादों में खो गया। जब वह भी अकील के साथ ईद के मेले गया था। दोनों ने साथ में झूला झूला था। शाम को अकील की अम्मी कितनी लजीज सिवइयां घर पर दे गई थीं।

अकील गुस्साया, 'मैं तुमसे बात कर रहा हूं और तुम न जाने कहां खोए हो?' 'न... नहीं यार। मैं सोच रहा था कि तो क्या इस बार तुम सिवइयां भी नहीं खिलाओगे?' अखिल बोला। 'अरे क्यों नहीं? ऐसा नहीं होगा।' अकील तुरंत बोला। अकील-अखिल के पापा टीचर हैं। इन दिनों स्कूल नहीं जा रहे थे। इसलिए अब वे घर में ही रहते थे। बस सुबह-शाम सबका छत पर टहलना होता था। सब मास्क लगाए रहते और दो गज दूरी का पालन करते हुए एक-दूसरे के लिए दुआएं करते। यह समझाते कि इस समय किसी भी हालत में मन को कमजोर नहीं होने देना है।

चारों तरफ हाहाकार था। शायद ही कोई हो जिसका कोरोना के कारण मन परेशान न हो। अकील की दादी को बहुत-सी देशी दवाओं के नुस्खे रटे हुए थे। वे आनन-फानन में इलाज बता देती थीं और लोगों के रोग उड़न-छू हो जाते थे। लेकिन न जाने क्या हुआ, दादी अम्मा बीमार पड़ गईं। उन्हें पहले जुकाम आया फिर बुखार। बहुत कमजोरी आ गई। उम्र का भी असर था। डॉक्टर साहब को बड़ी मुश्किल से दिखा पाए। अस्पताल में बहुत भीड़ थी। दादी का टेस्ट करते आज चार दिन हो गए थे, लेकिन रिपोर्ट अभी तक नहीं आई थी। आज ईद (eid) भी थी। वैसे भी ईद (eid) को लेकर इस बार कोई खास तैयारी न थी। पर अब मन ज्यादा उचाट हो गया था। हालांकि दादी को आराम हो रहा था। कभी अकील तो कभी अखिल के पापा उनकी दवा लेने जाते थे। पूरा घर उनकी तीमारदारी में लगा था।

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ईद मुबारक (eid mubarak)


ईद वाले दिन अखिल और अकील वीडियो कॉल पर बात कर रहे थे। अचानक अखिल को अपने पापा अकील के घर पर दिखे। उनके हाथ में कोई लिफाफा था। वे खुश होकर बता रहे थे, 'फिकर नहीं करना। डॉक्टर के यहां से आ रहा हूं। अम्मा की रिपोर्ट तो बिल्कुल ठीक है। एक-दो दिन में पूरी तरह चंगी हो जाएंगी।' अकील ने मोबाइल कैमरा दादी अम्मा की ओर कर दिया। वे कह रही थीं, 'मैं तो कब से कह रही थी। मेरी फिकर मत करो। ठीक हो जाऊंगी। यही सब हैं कि पूरा घर सर पर उठा रखा है। सब मायूसी में बैठे रहते हैं। 

आज ईद है। सिवइयां तक नहीं बनाई।' इधर अखिल के फोन पर सारी बातें उसकी मम्मी सुन रही थीं। वे खुश होकर बोलीं, "ईद मुबारक हो अम्माजी! सिवइयों की चिंता मत करें अम्मा जी। मैंने बना ली हैं। अभी लाती हूं गरम-गरम।' दादी ने आंखों पर चढ़ा चश्मा दो-तीन बार हिलाया। हंसते हुए बोलीं, 'हां, जल्दी से ले आ बहू।...लेकिन ध्यान रहे ... दो गज दूरी...!' ...बहुत जरूरी।' आगे का वाक्य सभी ने मिलकर पूरा किया।

और फिर दोनों ही घरों से ईद मुबारक-ईद मुबारक का शोर गूंज उठा। 




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